Bairagi歌词由the shloka演唱,出自专辑《Bairagi》,下面是《Bairagi》完整版歌词!
Bairagi歌词完整版
वैरागी भये मन
जग में रमे ना हम
अपने में हैं मगन
और क्या बताएं हम
बस है कला का संग
लुप्त हैं कबसे शून्य पे हम
उच्च है कला पर मूल्य है कम
पुश्तों की भाषा पीठ पे लादे
गर्व से चलुं , यही पुन्य धरम
मिले कदम - कदम सांप
दिखे डगर - डगर घात
वचन सनम का भी झूठा
रहा भरम बरख सात
रखा दरद जखम दाब
तभी कलम वजनदार
नहीं कत्ल होगा स्वप्न
हम अटल जन्मजात
धूर्त जो सबसे वो राज भोग रहा
दुष्ट ही पूज्य तो मैं शांत देख रहा
सुर्ख़ है गला मैं तान खेंच रहा
मैं मूर्ख की नगरी में ज्ञान बेच रहा
कहूं तुझसे मैं इतना ऐ फलक जमीं
दे दरद सभी , कर तरस नहीं
बस कलम को ना छीन , वही अभिमान मेरा
बाकी दुनिया से पड़ा नहीं फरक कभी
वैरागी भये मन
जग में रमे ना हम
अपने में हैं मगन
अब
जो मिली है शिक्षा
बस वही हूं लिखता
मेरे गीत को सुनके
फिर करो समीक्षा
जो दबी है भाषा
कुछ कहीं दिखता
उसे तुमको दे जाऊं है
यही कवि की इच्छा
पर लिख कर इतना क्या मतलब जब बिकता यहां पर मिथ्या
जनता कैसे उल्लू बनते आती इनको विद्या
घिसता हूं मैं तलवा अपना घिसते ना हम जिह्वा
हक का देना है तो दो मांगा ना कोई भिक्षा
दोस्त
भरा है शोर
अभी भी चुप
हला को घोंट
हालांकि बोहत
लगा है चोट
उसी से आज
बना मैं ठोस
मरा हूं रोज
लदा है बोझ
छोड़ा ना पर
कला की डोर
संभाला खुद को
दबा के क्रोध
दूजा ना रास्ता
कला या मौत
जब निकले प्राण मेरे शरीर से
कोई दाग ना रहे मेरे जमीर पे
मेरे क्रांति की आग बस जलती रहे
हम रहे जग में या नही रहें